माथे पर तनाव की लकीरें, आंखों में मायूसी मजदूरों की मजबूरी, जिंदगी बचाने को मजदूर घर की ओर दौड़े
उत्कर्ष भार्गव
शिवपुरी। कोरोना संकट और लॉकडाउन प्रवासी मजदूरों के लिए काल बन गया है। एक वायरस ने पूरी दुनिया को हिलाकर रख दिया है। रोजी-रोटी की चिता में अपना गांव, अपना घर छोड़ पूना व मुबई की झोपड़पट्टी में गुजारा करने वाले प्रवासी मजदूरों का कारवां सड़क पर चल रहा है। लॉकडाउन में फंसे प्रवासी मजदूर किसी तरह अपनी जिंदगी बचाने के लिए घरों की ओर लौट रहे हैं, मगर बदनसीबी ऐसी कि काफी संख्या में हादसों का भी शिकार हो रहे हैं। प्रवासी कामगार मजदूरों के सामने बड़ी संकट आन खड़ी हुई है। लॉकडाउन में आमदनी के सारे रास्ते बंद हैं, जिसकी वजह से शहरों में उनका जीना मुश्किल हो गया है। हजारों मजदूर पैदल या फिर किसी तरह ट्रकों में लदकर घरों की ओर लौट रहे हैं। परंतु दिल चीर देने वाली बात ये है कि बेचारे मजदूर जिस वाहन का प्रयोग कर रहे हैं वही यम का वाहन साबित होता है. रूह कांपने वाली दर्दनाक खबर देश के कई हिस्सों से आ रही हैं. हालांकि केंद्र सरकार विशेष ट्रेन चलवाकर मजदूरों को घर भेजने का प्रबंध कर रही है लेकिन ये विशेष ट्रेनें सभी मजदूरों को घर तक छोड़ने में सक्षम नहीं हैं.
शिवपुरी जिले की सीमा उत्तरप्रदेश एवं राजस्थान को छूती है । यही वजह है की उत्तर प्रदेश एवं राजस्थान को जाने वाले हज़ारो मजदूर जिले से निकल रहे है। आप शिवपुरी के पडोरा बायपास पर 15 मिनट खड़े हो जाइए। 25 से ज्यादा ऑटो रिक्शा आपके सामने से गुजर जाएंगे। जी हां, मुंबई, वसई, पुणे, नवी मुंबई, ठाणे, विरार के एक लाख से ज्यादा रिक्शा चालक 200 सीसी की क्षमता वाले छोटे से ऑटो पर 1200 से 1800 किलोमीटर के सफर पर निकल चुके हैं। हर ऑटो में कम से कम चार सवारी है। तीन दिन पहले इस तीन पहिया वाहन पर शुरू हुई इनकी जिंदगी अभी अगले तीन दिन तक ऑटो रिक्शा पर ही गुजारनी है। दो महीने तक लॉकडाउन खुलने का इंतजार करने के बाद संयम टूट गया। जब भूखे मरने की नौबत आ गई तो यह रिक्शा चालक परिवार लेकर अपने गांव के लिए निकल पड़े। इन ऑटो वालों में से ज्यादातर यूपी, झारखंड, बिहार के गांवों के हैं।
आज एक ऐसे ही ऑटो रिक्सा से हमारी मुलाकात हुई जिनका नाम अरविंद मिश्रा था । वह महाराष्ट्र के मुंबई से उत्तर प्रदेश के इलाहाबाद तक अपने ऑटो रिक्शा से ही चल पड़े उन्होंने बताया कि लॉकडाउन के शुरुआती दिनों में दिक्कत नहीं हुई क्योंकि घर में थोड़ा बहुत राशन था, उससे दिन कट गए. लेकिन उसके बाद भी जब लॉकडाउन बढ़ता गया तो घर में रखा राशन खत्म होने लगा था। उनके सामने मुंबई छोड़ने के सिवाय और कोई चारा नहीं बचा था। अरविंद के मुताबिक उन्होने मुंबई से घर जाने के लिए साधन के लिए खोज की, लेकिन जब काफी कोशिशों के बाद भी साधन की व्यवस्था नहीं बानी तो उन्होंने ऑटो से ही इलाहाबाद तक का रास्ता तय करने का विचार किया. अरविंद ऑटो में बैठकर करीब 1400 किलोमीटर तक का सफर करेगा, फिर अपने गांव पहुंचेगा.
ऐसे ही एक शख्स मकबूल शेख जिन्होंने बताया कि वह मोटरसाइकिल पूना से अपने गांव इलाहाबाद के लालगंज को निकले है । यह अपने साले मोहम्मद मेहताब के साथ दोनों पूना के एक सैलून में काम करते थे । महीने भर में बीस हजार रूपए तक कमा लेते थे लॉकडाउन हुआ, तो जिस दुकान में वे काम करते थे ,वह बंद हो गई | बैठे-बैठे आखिर कितने दिन खाते ? लिहाजा मोटर साईकिल से ही साले के साथ अपने ने घर की ओर निकल लिए। इनके साथ में एक छह साल की बेटी और तीन साल का भी बेटा था । वह बेटी अपने आगे और बेटे को बीच में बिठाए हुए थे । बच्चों के मासूम चेहरों पर थकान की सलवटें साफ दिखाई दे रही थीं। 35-40 डिग्री सेल्सियस की इस तेज गर्मी में उनके चेहरे बिल्कुल मुरझाए हुए थे। मकबूल शेख ने बताया कि वह अपने परिवार के साथ 13 मई को पूना से चले थे, तीन दिन करीब एक हजार किलोमीटर का सफर तय कर चुके है । इन्हें अपनी मंजिल तक पहुंचने में लगभग 600 किलोमीटर का सफर और तय करना है । लेकिन इनके
चेहरे पर थकान के कोई निशान नहीं, बल्कि मंजिल
नजदीक आने पर अब कुछ राहत दिखाई दे रही थी ।
शिवपुरी। कोरोना संकट और लॉकडाउन प्रवासी मजदूरों के लिए काल बन गया है। एक वायरस ने पूरी दुनिया को हिलाकर रख दिया है। रोजी-रोटी की चिता में अपना गांव, अपना घर छोड़ पूना व मुबई की झोपड़पट्टी में गुजारा करने वाले प्रवासी मजदूरों का कारवां सड़क पर चल रहा है। लॉकडाउन में फंसे प्रवासी मजदूर किसी तरह अपनी जिंदगी बचाने के लिए घरों की ओर लौट रहे हैं, मगर बदनसीबी ऐसी कि काफी संख्या में हादसों का भी शिकार हो रहे हैं। प्रवासी कामगार मजदूरों के सामने बड़ी संकट आन खड़ी हुई है। लॉकडाउन में आमदनी के सारे रास्ते बंद हैं, जिसकी वजह से शहरों में उनका जीना मुश्किल हो गया है। हजारों मजदूर पैदल या फिर किसी तरह ट्रकों में लदकर घरों की ओर लौट रहे हैं। परंतु दिल चीर देने वाली बात ये है कि बेचारे मजदूर जिस वाहन का प्रयोग कर रहे हैं वही यम का वाहन साबित होता है. रूह कांपने वाली दर्दनाक खबर देश के कई हिस्सों से आ रही हैं. हालांकि केंद्र सरकार विशेष ट्रेन चलवाकर मजदूरों को घर भेजने का प्रबंध कर रही है लेकिन ये विशेष ट्रेनें सभी मजदूरों को घर तक छोड़ने में सक्षम नहीं हैं.
शिवपुरी जिले की सीमा उत्तरप्रदेश एवं राजस्थान को छूती है । यही वजह है की उत्तर प्रदेश एवं राजस्थान को जाने वाले हज़ारो मजदूर जिले से निकल रहे है। आप शिवपुरी के पडोरा बायपास पर 15 मिनट खड़े हो जाइए। 25 से ज्यादा ऑटो रिक्शा आपके सामने से गुजर जाएंगे। जी हां, मुंबई, वसई, पुणे, नवी मुंबई, ठाणे, विरार के एक लाख से ज्यादा रिक्शा चालक 200 सीसी की क्षमता वाले छोटे से ऑटो पर 1200 से 1800 किलोमीटर के सफर पर निकल चुके हैं। हर ऑटो में कम से कम चार सवारी है। तीन दिन पहले इस तीन पहिया वाहन पर शुरू हुई इनकी जिंदगी अभी अगले तीन दिन तक ऑटो रिक्शा पर ही गुजारनी है। दो महीने तक लॉकडाउन खुलने का इंतजार करने के बाद संयम टूट गया। जब भूखे मरने की नौबत आ गई तो यह रिक्शा चालक परिवार लेकर अपने गांव के लिए निकल पड़े। इन ऑटो वालों में से ज्यादातर यूपी, झारखंड, बिहार के गांवों के हैं।
आज एक ऐसे ही ऑटो रिक्सा से हमारी मुलाकात हुई जिनका नाम अरविंद मिश्रा था । वह महाराष्ट्र के मुंबई से उत्तर प्रदेश के इलाहाबाद तक अपने ऑटो रिक्शा से ही चल पड़े उन्होंने बताया कि लॉकडाउन के शुरुआती दिनों में दिक्कत नहीं हुई क्योंकि घर में थोड़ा बहुत राशन था, उससे दिन कट गए. लेकिन उसके बाद भी जब लॉकडाउन बढ़ता गया तो घर में रखा राशन खत्म होने लगा था। उनके सामने मुंबई छोड़ने के सिवाय और कोई चारा नहीं बचा था। अरविंद के मुताबिक उन्होने मुंबई से घर जाने के लिए साधन के लिए खोज की, लेकिन जब काफी कोशिशों के बाद भी साधन की व्यवस्था नहीं बानी तो उन्होंने ऑटो से ही इलाहाबाद तक का रास्ता तय करने का विचार किया. अरविंद ऑटो में बैठकर करीब 1400 किलोमीटर तक का सफर करेगा, फिर अपने गांव पहुंचेगा.
ऐसे ही एक शख्स मकबूल शेख जिन्होंने बताया कि वह मोटरसाइकिल पूना से अपने गांव इलाहाबाद के लालगंज को निकले है । यह अपने साले मोहम्मद मेहताब के साथ दोनों पूना के एक सैलून में काम करते थे । महीने भर में बीस हजार रूपए तक कमा लेते थे लॉकडाउन हुआ, तो जिस दुकान में वे काम करते थे ,वह बंद हो गई | बैठे-बैठे आखिर कितने दिन खाते ? लिहाजा मोटर साईकिल से ही साले के साथ अपने ने घर की ओर निकल लिए। इनके साथ में एक छह साल की बेटी और तीन साल का भी बेटा था । वह बेटी अपने आगे और बेटे को बीच में बिठाए हुए थे । बच्चों के मासूम चेहरों पर थकान की सलवटें साफ दिखाई दे रही थीं। 35-40 डिग्री सेल्सियस की इस तेज गर्मी में उनके चेहरे बिल्कुल मुरझाए हुए थे। मकबूल शेख ने बताया कि वह अपने परिवार के साथ 13 मई को पूना से चले थे, तीन दिन करीब एक हजार किलोमीटर का सफर तय कर चुके है । इन्हें अपनी मंजिल तक पहुंचने में लगभग 600 किलोमीटर का सफर और तय करना है । लेकिन इनके
चेहरे पर थकान के कोई निशान नहीं, बल्कि मंजिल
नजदीक आने पर अब कुछ राहत दिखाई दे रही थी ।