फांसी की सजा के बाद भी सालों से जिन्दा हैं दरिन्दे 32 को फांसी की सजा, फंदे तक कोई नहीं

भोपाल। प्रदेश की जेलों में 32 ऐसे कैदी बंद हैं, जिन्हें निचली अदालत ने फांसी की सजा सुना दी है। इनमें अधिकांश बलात्कार के आरोपी हैं। इन सब कैदियो की अपील बड़ी अदालतो में सालो से लंबित है । सजा होने के बाद भी फांसी के फंदे तक पहुचने में कितना समय लग जाता है यह इससे ही पता चलता है कि प्रदेश में आखिरी फांसी बीस साल पहले हुई थी। एक बात और प्रदेश में फांसी देने के लिए जल्लाद भी नही है।
बलात्कार के मामलों में निचली अदालतें तेजी से फैसला तो कर रही हैं लेकिन, सजा पर अमल नहीं हो पा रहा है। ऊपरी अदालों में सालों अपील लंबित रहती है। सुप्रीम कोर्ट और फिर राष्ट्रपति के समक्ष मामला चला जाता है। वहां से भी यदि सजा को यथावत रखा गया तो फांसी पर टांगने के लिए जल्लाद नहीं होते। गंभीर मामलों में अदालतें फांसी की सजा भी यदा-कदा ही सुनाती हैं। निचली अदालतें यदि फांसी की सजा सुना देती हैं तो हाईकोर्ट अथवा सुप्रीम कोर्ट से आजीवन कारावास की सजा में परिवर्तित हो जाती है। मध्यप्रदेश में फांसी की सजा बीस साल पहले हुई थी। देश में मानवाधिकार संगठनों द्वारा फांसी का विरोध किए जाने के बाद फांसी की सजा सुनाने के मामलों में भी कमी देखी गई है।

दरिंदों को फांसी पर चढ़ाओ

एक-दो सालों से बलात्कारियों को फांसी दिए जाने की मांग तेजी से उठी है। बलात्कारियों को फांसी की सजा देने का कानून भी बना दिया गया है। मध्यप्रदेश में बारह साल से कम उम्र की लड़कियों के साथ होने वाले बलात्कार में फांसी की सजा प्रावधान किया गया है। इस प्रावधान के बाद कुछ मामलों में निचली अदालतों ने फांसी की सजा का ऐलान भी किया है। निचली अदालत के फैसले के खिलाफ आरोपी हाईकोर्ट में अपील में चले गए हैं।