सहरिया क्रांति का फाग उत्सव: आदिवासी जनों ने रंगों में रंगीली धूम मचाई

शिवपुरी। सहरिया क्रांति का फाग उत्सव होली के अगले दिन सहरिया क्रांति संयोजक संजय बेचैन के निवास पर भव्य तरीके से आयोजित किया गया। इस अवसर पर सहरिया आदिवासी समाज के सैकड़ों लोग एकत्रित हुए, जिन्होंने एक साथ रंग-गुलाल उड़ाकर उत्सव के आह्लाद को बढ़ाया। सारा वातावरण पारंपरिक धुनों से गूंज उठा और हर ओर रंगों की बौछार देखने को मिली। 

इस विशेष फाग उत्सव में केवल स्थानीय लोगों ही नहीं, बल्कि शिवपुरी, करेरा, पोहरी, बदरवास, पनिहार, मुरैना, श्योपुर और ग्वालियर जैसे क्षेत्रों से भी बड़ी संख्या में आदिवासी समाज के लोग अपनी उपस्थिति दर्ज कराने पहुंचे। उत्सव का आयोजन पारंपरिक उत्सव की विविधता को दर्शाते हुए किया गया, जहां राई नृत्य की आकर्षक प्रस्तुतियां देखने को मिलीं। ढोलक की थाप और मांदल की मधुर धुन पर पुरुष और महिलाएं अपनी खुशी का इज़हार करते हुए डांस करते रहे। 

सहरिया क्रांति के प्रमुख कार्यकर्ता जैसे विजय भाई, कल्याण आदिवासी, औतार भाई सहरिया, भदौरिया आदिवासी, कारु आदिवासी, मोहर सिंह आदिवासी, गणेश आदिवासी, नीलेश आदिवासी और शिशुपाल आदिवासी सहित अन्य ने उत्सव में भाग लिया। सभी ने एक-दूसरे को गुलाल लगाकर होली की शुभकामनाएं दीं। संयोजक संजय बेचैन ने अपने उद्घाटन भाषण में कहा, "यह उत्सव केवल रंगों का नहीं है, बल्कि हमारे सहरिया समाज की एकता और सांस्कृतिक धरोहर का प्रतीक है। इस तरह के आयोजनों से हमारी परंपराएं जीवित रहती हैं और समाज में भाईचारे का भाव और मजबूत होता है।"
इस अवसर पर बुजुर्गों ने भी अपने अनुभवों को साझा किया और युवाओं को प्रेरित किया कि वे समाज की समृद्ध सांस्कृतिक परंपराओं को बनाए रखें। सभी उपस्थित लोगों ने मिलकर सामूहिक भोज का आनंद लिया और एक-दूसरे पर रंग-गुलाल लगाकर होली के इस पावन पर्व की युवा भावनाओं के साथ मनाया। 

फाग उत्सव के दौरान, बच्चों और अंत में, युवाओं ने उपस्थित सभी लोगों के समक्ष पारंपरिक होली गीतों का स्वरूप प्रस्तुत किया। ‘फाग खेलन आए बनवारी...’ जैसे लोकप्रिय लोकगीतों पर सभी एक साथ गुनगुनाने लगे। उत्सव में महिलाएं भी पीछे नहीं रहीं, उन्होंने पारंपरिक साड़ी पहनकर लोकगीत गाए और समूह में नृत्य किया। इस दौरान रंग-बिरंगे कपड़े और आनंद की लहर ने सबको एक-दूसरे के साथ जोड़ दिया।
यह आयोजन न केवल सहरिया समाज की परंपराओं को जीवित रखने का एक प्रयास था, बल्कि एक नई ऊर्जा और उत्साह का संचार भी था। सभी ने मिलकर संकल्प लिया कि आने वाले वर्षों में इस परंपरा को और भव्य रूप से मनाएंगे। साथ ही, उन्होंने यह भी तय किया कि आने वाली पीढ़ियों को इस सांस्कृतिक विरासत के प्रति जागरूक किया जाएगा ताकि यह धरोहर हमेशा यूं ही जीवित रहे।

फाग उत्सव ने सहरिया आदिवासी समाज के लोगों को एक नई दिशा प्रदान की, जहां उन्होंने एकजुट होकर न केवल त्योहार को मनाया बल्कि अपने समाज की एकता और सांस्कृतिक समृद्धि का भी उत्सव मनाया। इस प्रकार, सहरिया क्रांति का फाग उत्सव केवल एक त्योहार नहीं था, बल्कि यह एकता, प्रेम, और एक नई शुरुआत का प्रतीक था, जिसे आने वाले स्थानों पर भी फैलाया जाएगा। 

अंत में, विभिन्न गीतों, नृत्यों और हंसी-खुशी के बीच, सभी ने इस आनंदमयी पल को अपनी स्मृतियों में बसाने का संकल्प लिया। आदिवासी समाज ने रंगों की इस महक के साथ न केवल अपनी संस्कृति का जश्न मनाया, बल्कि आपसी प्यार और आपसी भाईचारे की भावना को भी मजबूत किया। इस प्रकार, सहरिया क्रांति का फाग उत्सव एक यादगार अनुभव बन गया।